आखिर दो साल से बच्चों को क्यों नहीं लगे डीपीटी और टीडी के टीके
कोरोना काल में बीते दो साल से स्कूल बंद रहे। जिसके चलते स्कूलों में बच्चों को डीपीटी और टीडी के टीके ही नहीं लग पाए। वैक्सीन को लगाने के लिए अभिभावक भी लापरवाह रहे। अब अगर बच्चों को कोई चोट लगती है तो इसमें घाव गहरा होने का खतरा हो गया है। इसके अलावा काली खांसी, गलघोंटू भी जानलेवा साबित हो सकता है। इसे लेकर स्वास्थ्य विभाग की भी चिंताएं बढ़ने लगी हैं। विभाग ने टीकाकरण करवाने के लिए शिक्षा विभाग को निर्देश दिए हैं।
स्वास्थ्य विभाग की ओर से बच्चों को विभिन्न बीमारियों से बचाव के लिए स्कूलों में ही टेटनेस और डीपीटी वैक्सीन लगाई जाती है। डीपीटी वैक्सीन पांच से सात साल के बच्चों को बूस्टर डोज के तौर पर लगाई जाती है। जबकि 10 से 16 साल के बच्चों को टीडी वैक्सीन लगती है। डीपीटी वैक्सीन का डिप्थीरिया, पर्टुसिस, गलघोंटू जैसे गंभीर संक्रामक रोग से बचाव करने के लिए उपयोग किया जाता हैं। यह ऐसे संक्रामक रोग होते हैं। जिसके कारण बच्चे की जान का जोखिम बना रहता है।
टीकाकरण देख रहे चिकित्सक डॉ. गगन ने कहा कि टीकाकरण शुरू करने के लिए शिक्षा विभाग से बातचीत हो गई है। कोविड में डीपीटी और डीटी वैक्सीन की बूस्टर डोज नहीं लग पाई है। जल्द ही यह कार्य स्कूलों में शुरू होगा। इन दिनों स्कूलों में बच्चों को कोविड वैक्सीन भी लगाई जा रही है। अब टीडी और डीपीटी वैक्सीन की शुरूआत भी स्कूलों में होगी। ऐसे में संशय रहेगा कि कौन सी वैक्सीन कब लगाई जाए।
इसलिए जरूरी है टीडी वैक्सीन
टीडी वैक्सीन टेटनेस जैसे गंभीर रोग से बचाव के लिए बेहद जरूरी है। उच्च रक्तचाप, तंत्रिका तंत्र का प्रभावित होना, मांसपेशियों में ऐंठन, गर्दन और जबड़े में जकड़न इसके लक्षण है। रोगियों को सांस लेने में तकलीफ, गर्दन में सूजन, बुखार और खांसी भी इसके लक्षण हैं।