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जमानत के लिए व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता का ख्याल रखने और संतुलित करने की जरूरत

नई दिल्ली। उच्च न्यायालय ने कहा कि आपराधिक मामलों में संदिग्ध को हिरासत में लेकर पूछताछ करना, अपराध को सुलझाने के बुनियादी और प्रभावी तरीकों में से एक है, लेकिन व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता का ख्याल रखने और संतुलित करने की जरूरत है। अदालत ने धोखाधड़ी और हेराफेरी के मामले में आरोपी बिल्डर को अग्रिम जमानत प्रदान करते हुए यह टिप्पणी की।

न्यायमूर्ति आशा मेनन ने अपने फैसले में कहा कि प्रत्येक मामले के तथ्य एक आरोपी की अग्रिम जमानत की पात्रता तय करते है। अदालत ने कहा है कि जहां एक संदिग्ध से पूछताछ अपराध को सुलझाने के बुनियादी और प्रभावी तरीकों में से एक है, वहीं एक व्यक्ति की स्वतंत्रता को भी संतुलित करने की जरूरत है।

न्यायालय ने कहा है कि मौजूदा मामला उन मामलों से एक नहीं है, जहां हिरासत में पूछताछ के बिना जांच में बाधा उत्पन्न होगी। अदालत ने मामले में मैसर्स रुद्र बिल्डवेल प्राइवेट लिमिटेड का प्रमोटर और निदेशक मुकेश खन्ना को अग्रिम जमानत प्रदान की है। अदालत ने साथ ही आरोपी को जांच में सहयोग करने का निर्देश दिया है।
अदालत ने कहा है कि यदि आरोपी खन्ना को गिरफ्तार किया जाता है तो उसे एक लाख रुपये के मुचलके व इतनी ही रकम की जमानत राशि जमा करने की शर्त पर जमानत दे दी जाए।आरोपी के खिलाफ एक कंपनी की ओर से दाखिल शिकायत पर धोखाधड़ी और हेराफेरी के आरोप में मुकदमा दर्ज किया है। शिकायतकर्ता कंपनी ने आरोपी के कंपनी मैसर्स रुद्र बिल्डवेल प्राइवेट लिमिटेड में 11 फ्लैट बुक कराए थे और बदले में कुल कीमत का 75 फीसदी रकम का भुगतान कर दिया था। शिकायत में बिल्डर पर इन फ्लैटों को कब्जा नहीं देने और इसे किसी और को बेचने का आरोप लगाया है।

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