आर्थिकी भी अपने आप चल रही
हरिशंकर व्यास
ऐसा नहीं है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष की राजनीति स्वचालित मोड में आ गई है तो सरकार खुल कर और जम कर काम कर रही है। सरकार का काम भी स्वचालित मोड में चल रहा है। देश की अर्थव्यवस्था चार साल से ढलान पर है। लुढक़ती ही जा रही है। सबको पता है कि उसको लुढक़ने से रोकने के लिए आगे से ज्यादा बड़ा बल लगाना होगा लेकिन उसकी जरूरत महसूस नहीं हो रही है क्योंकि अर्थव्यवस्था किसी भी हालत में हो उससे आम आदमी बेपरवाह है। उसे मध्यकालीन भारत में हुई गलतियों को सुधारने के काम में ज्यादा दिलचस्पी पैदा हो गई है। वैसे भी उसको पांच किलो अनाज, एक किलो दाल और कहीं कहीं एक किलो तेल, नमक भी मिल रहा है। इसके अलावा किसान सम्मान निधि के तौर पर पांच सौ रुपए हर महीने मिल रहे हैं। आवास और शौचालय के लिए भी पैसे मिल रहे हैं और महिलाओं को भी हजार रुपए महीना मिल रहा है। इसलिए उनको क्यों अर्थव्यवस्था के बारे में सोचने की जरूरत है? उनको आंकड़ों पर कोई यकीन नहीं है क्योंकि वे मान रहे हैं कि अर्थव्यवस्था अच्छी होगी तभी सरकार गरीब कल्याण की इतनी बड़ी योजनाएं चला रही है।
सोचें, चार साल अर्थव्यवस्था में क्या बदला है या क्या सुधार हुआ है? नोटबंदी के असर में 2018 की पहली तिमाही से अर्थव्यवस्था में जो गिरावट का दौर शुरू हुआ वह अब तक जारी है। दो साल कोरोना महामारी के बीच अर्थव्यवस्था की गिरावट ऐतिहासिक थी। लेकिन उसके बाद भी सुधार वैसा नहीं है, जिसकी उम्मीद की जा रही थी। पिछले चार साल आर्थिक खबरों की सुर्खियां लगभग एक जैसी हैं। विकास दर में गिरावट, थोक व खुदरा महंगाई की दर में रिकॉर्ड बढ़ोतरी, पेट्रोल-डीजल-सीएनजी-पीएनजी-रसो
यानी एक तरफ कर वसूली से सरकार की कमाई बढ़ रही है और दूसरी ओर तमाम पैमानों पर अर्थव्यवस्था रसातल की ओर जाती हुई। इस स्थिति में सुधार के लिए कहीं भी कोई सार्थक या सकारात्मक दखल दिखाई नहीं दिया। ऐसा लग रहा है कि जैसा चल रहा है वह किसी योजना के तहत चल रहा है। क्योंकि अगर इसके पीछे कोई योजना नहीं होती तो हर पैमाने पर आर्थिकी में गिरावट से सरकार घबराहट में रहती। लेकिन सरकार के घबराहट में होने का कोई लक्षण नहीं दिख रहा है। और तय माने यह ऑटो मोड बहुत लंबा चलेगा और जो होगा उसका भगवान मालिक।