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श्रीदेव सुमन :गढ़वाल का महान क्रांतिकारी

पुण्यस्मरण एक क्रांतिकारी का-

पार्थसारथि थपलियाल

जब देशभर में ब्रिटिश सरकार को भारत से बाहर करने के लिए आंदोलन चल रहा था, ठीक उसी समय उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल में एक युवा टिहरी रियासत द्वारा आम जनता के शोषण और दमनकारी नीतियों के विरूद्ध संघर्ष कर रहा था। उस युवक का नाम था श्रीदेव सुमन।

श्रीदेव सुमन का जन्म टिहरी रियासत की बमुंडा पट्टी के एक गांव में 1916 में हुआ था। आपके पिता जी विख्यात चिकित्सक थे। उन दिनों राजा को विष्णु स्वरूप माना जाता था। टिहरी नरेश को बद्रीनाथ कहा जाता था। राजा का आदेश भगवान का आदेश।था। जनता का शोषण चरम पर था। देशभर में गांधी जी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था। श्रीदेव सुमन गांधी जी के विचारों से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने प्रजमंडल संगठन बनाया और उसके माध्यम से दमनकारी नीतियों और राजा से छुटकारा पाने के उद्देश्य से आंदोलन चलाया।

टिहरी नरेश ने उन्हें टिहरी जेल में कैद करवा दिया। उन्हें अमानवीय यातनाएं दी गई। उनके हाथों और पैरों पर भारी भरकम बेड़ियां डाल दी गई। खाने में उन्हें रेत मिश्रित आटे की रोटियां डी जाती थी। श्रीदेव सुमन ने जेल में भूख हड़ताल शुरू कर दी। उन्हें खिलाने के कई प्रयास किए लेकिन सुमन अपने इरादे से टस से मस नहीं हुए। वे 84 दिनों तक भूख हड़ताल पर रहे। संभवत: यह भूख हड़ताल आमरण अनशन की सबसे बड़ी अवधि है। आखिर इस भूख हड़ताल के 84वें दिन महान क्रांतिकारी श्रीदेव सुमन में रियासत की दमनकारी नीतियों के विरूद्ध संघर्ष करते हुए 25 जुलाई 1944 को प्राण त्याग दिए। दमनकारी शासन ने धार्मिक रीति से उनका अंतिम संस्कार नहीं होने दिया और गुप चुप तरीके से भिलंगना नदी में उनके मृत शरीर को बहा दिया।
आज श्रीदेव सुमन की पुणयतिथि पर उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि, वे शहीद हुए ताकि जनता आजाद हो सके।

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