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तो आबादी में विश्वगुरूता!

हरिशंकर व्यास
क्या भारत और मोदी सरकार को पता था कि हम अगले साल ही जनसंख्या में दुनिया के नंबर एक हो जाएंगे? चीन से आगे हो जाएंगे! मैं अपने अनुमानों में अपने लेखन में 140 करोड़ लोगों का जुमला इस्तेमाल करता रहा हूं। पर मुझे भी अंदाज नहीं था कि सन् 2023 में ही भारत की आबादी 140 करोड़ लोगों से अधिक हो जाएगी। चीन पीछे हो जाएगा! विश्व जनसंख्या पर संयुक्त राष्ट्र का ताजा आकलन चौंकाने वाला है। चीन की 131 करोड़ आबादी के मुकाबले भारत को भविष्य के सिनेरियो के अनुसार सन् 2050 में 166 करोड़ लोगों का पेट भरना है। इसे हम बच्चे पैदा करने में अपनी विश्वगुरूता मानें या सब रामभरोसे होने के भारत यथार्थ की त्रासदी मानें? सवाल का जवाब हम भारतीयों के बस की बात नहीं है। इसलिए कि किसी के लिए आबादी मुसलमानों के बढऩे का खतरा है तो किसी के लिए इससे पांच खरब डॉलर की आर्थिकी का सपना साकार होना है। तो अंबानियों-अडानियों के लिए लोगों को लूटने की अनंत संभावनाएं हैं।

अपनी कसौटी एक भारतीय के जीवन की नारकीयता है। 140 करोड़ लोगों में से यदि आज 80 करोड़ लोग महीने के पांच किलो फ्री राशन और कोई 20-25 करोड़ किसान आदि सालाना छह हजार रुपए की नकदी की खैरात व पेंशन आदि से जिंदगी जी रहे हैं, मतलब 100 करोड़ लोग भूखे-बेरोजगार-अर्ध बेरोजगारी व छोटी-छोटी जरूरतों के लिए तड़पता जीवन जी रहे हैं तो भविष्य के 166 करोड़ लोगों में तब कितने करोड़ लोग ऐसी ही अवस्था में होंगे? 125 करोड़ या डेढ सौ करोड़ लोग? यह सवाल इसलिए है क्योंकि लोगों का काम-धंधा और आर्थिकी जिस दिशा में बढ़ती हुई है वह दिशा अगले दस साल भी रहेगी और तब तक यदि पानीपत की अंदरूनी लड़ाई सडक़ों पर शुरू हो गई तब क्या होगा?

यह सवाल डराने या नकारात्मकता में नहीं है, बल्कि इस सच्चाई में है कि भारत का प्रधानमंत्री हो या सरकार या मुख्यमंत्री या राजनीतिक दल और देश का नैरेटिव, मीडिया सभी भारत की आबादी को अपने-अपने वोट बैंक में बांटे हुए हैं। गौर करें कि आबादी में भारत के नंबर एक बनने की ओर बढऩे की खबर पर देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने क्या टिप्पणी की? जाहिर है भारत में आबादी का बढऩा विभाजकता को बढ़ाने वाला है। लड़ाई बनवाने वाला है। हिंदू और मुसलमान लोगों की संख्या के आकार में ही हर जिले, हर चुनाव क्षेत्र में राजनीति होनी है। इसलिए आबादी का मतलब वह नासूर भी है, जिससे आगे कलह की सौ फीसदी गारंटी है!
क्या नहीं? भारत की आबादी का मसला अब मानव संसाधन, ह्यूमन रिसोर्सेस की राष्ट्रीय ताकत नहीं, बल्कि दुश्मनियों के फैसले का आधार है। फिर भले वह धार्मिक कसौटियों पर हो या जातीय कसौटियों पर।
तभी बढ़ी आबादी के साथ भारत वैश्विक ताकत (जैसे चीन) नहीं होगा, बल्कि या तो शोषण, लूट और गरीबी का बाजार बनेगा या लड़ाई का मैदान।

इसमें त्रासद पहलू यह है कि भारत एक पीढ़ी बाद बूढ़ी और बेगार आबादी से भरा हुआ होगा। दुनिया के अनुभवों के हिसाब से भारत को इस समय नौजवान आबादी याकि 15-64 वर्ष के बीच की वर्किंग आबादी की ऊर्जा से विकास में दौड़ते हुए होना था। वह वक्त गया जब पीवी नरसिंह राव और डॉ. मनमोहन सिंह ने समझदारी से दुनिया में भारत के अवसर पैदा कर नौजवान आबादी की आईटी फौज बनाने की जमीन तैयार की थी। नतीजतन अमेरिका के क्लिंटन प्रशासन के वक्त से न केवल इंफोसिस, टीसीएस जैसी महाबली भारतीय कंपनियां बनीं, बल्कि सिलिकॉन वैली और दुनिया के लिए नौजवान भारतीय आईटीकर्मियों को मौका मिला। वह सब अब मोदी सरकार के अग्निपथ से सिकुड गया है। भारत का नौजवान अब लाखों-करोड़ों की सैलेरी के पैकेज के सपनों के बजाय सेना में, सरकारी नौकरियों की सेवादारी के लिए दौड़ता हुआ है।

नॉलेज इकोनॉमी के लिए देश में ज्ञान, सत्य, मेहनत की धुन है ही नहीं, जबकि दुनिया का भविष्य यहीं है। मैंने इसलिए पहले लिखा है कि भारत का भविष्य आगे अफ्रीकी देशों से ज्यादा खराब होगा। इसलिए क्योंकि 140 करोड़ लोगों का ओरिएंटेशन (और खासकर 90 करोड़ युवा-वर्किंग आबादी, कुल आबादी का 67 प्रतिशत) सरकारी नौकरियों, कुरियर-डिलीवरी सेवाओं, परचूनी सर्विस सेक्टर के सपने या मजबूरी में जीता हुआ है। भारत की आईटी ताकत अब फिलीपीन जैसे देशों या श्रमशक्ति के अवसर बांग्लादेश (टेक्सटाइल), वियतनाम, थाईलैंड जैसे देश खाते हुए हैं। उस नाते कल्पना करें कि भारत की मौजूदा लेबर फोर्स मनरेगा से लेकर सरकारी नौकरियों, कुरियर-डिलीवरी की छोटी-ठेके की बेगारी, नौकरियों में जैसे खपते हुए या बेरोजगारी में टाइम पास करते हुए हैं उससे 2050 में नॉलेज इकोनॉमी या चाइनीज औद्योगिक-तकनीकी महाशक्ति के आगे भारत का क्या बनेगा? सन् 2050 के बाद भारत में भी कुल आबादी तथा वर्किंग क्लास आबादी में अपने आप तेजी से गिरावट आएगी। भारत की यूथ ऊर्जा का वक्त खत्म होता हुआ होगा।

सोचें, भारत अगले 25 वर्षों में वह देश होगा, जिसकी यूथ-वर्किंग आबादी, नौजवान लडक़े-लड़कियां क्वालिटी  शिक्षा (व्हाट्सऐप, ऐप, कोचिंग, रट्टा मार शिक्षा नहीं), ज्ञान-विज्ञान में पारंगत (न कि अंधविश्वासी), चेतन-जागरूक (वैश्विक समझ, यथार्थ बोध), स्थायी-सुरक्षित अच्छे नौकरी अवसरों (न कि अग्निपथ जैसी शॉर्टटर्म सेवादारी) के बिना टाइम पास करते हुए जीवन गुजारेंगी। तब सन् 2050 में भारत की भीड़ क्या होगी? कल्पना कीजिए और सोचिए कि बेसुध भारत अपने अवसरों को कैसे गंवाते हुए है!

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